फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत, मकरूह और हराम क्या हैं?
हम अक्सर सुनते हैं कि फलां काम फ़र्ज़ है, फलां वाजिब है, ये सुन्नत है, वो मकरूह है या हराम है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि इन शब्दों का असल में मतलब क्या है? खासकर जब बात नमाज़ की हो या हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी की, तो इन शरई (इस्लामी) नियमों का क्या असर पड़ता है? मसलन, अगर नमाज़ में कोई फ़र्ज़ छूट जाए तो नमाज़ का क्या होगा? या अगर कोई काम मकरूह है, तो उसे करने से क्या नुकसान होगा?
चलिए, इन सारी बातों को आसान और देसी ज़ुबान में समझते हैं, ताकि हर कोई इन शरई इस्तिलाहों (terms) को अच्छे से समझ सके। ये न सिर्फ नमाज़, बल्कि रोज़ा, ज़कात, हज और ज़िंदगी के हर काम पर लागू होता है।
फ़र्ज़ (Farz)
फ़र्ज़ वो काम हैं जो अल्लाह और उनके रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने हर मुसलमान पर ज़रूरी किए हैं। इनका करना हर हाल में लाज़िम है। फ़र्ज़ की दो तरह होती हैं:
1. फ़र्ज़-ए-ऐन (Farze Ayn)
ये वो फ़र्ज़ हैं जो हर मुसलमान पर ज़रूरी हैं और किसी एक के करने से बाकियों की ज़िम्मेदारी खत्म नहीं होती। मिसाल के तौर पर:
- पांच वक्त की नमाज़: हर शख्स को पढ़नी ज़रूरी है।
- रमज़ान के रोज़े: हर बालिग और सेहतमंद मुसलमान को रखने पड़ते हैं।
- ज़कात: जिसके पास निसाब (खास मात्रा में माल) हो, उसे देना ज़रूरी है।
अगर कोई फ़र्ज़-ए-ऐन छोड़ दे, तो वो बड़ा गुनाहगार होगा और उसे अल्लाह से माफी मांगनी होगी। मसलन, अगर नमाज़ में कोई फ़र्ज़ छूट जाए, जैसे रुकू या सज्दा, तो नमाज़ पूरी नहीं होगी और उसे दोबारा पढ़ना पड़ेगा।
2. फ़र्ज़-ए-किफाया (Farze Kifaya)
ये वो फ़र्ज़ हैं जो किसी बस्ती या मोहल्ले के कुछ लोग कर लें, तो बाकी सब की ज़िम्मेदारी खत्म हो जाती है। लेकिन अगर कोई भी न करे, तो पूरी बस्ती गुनाहगार होगी। मिसाल:
- नमाज़-ए-जनाज़ा: अगर कुछ लोग जनाज़े की नमाज़ पढ़ लें, तो बाकियों पर से फ़र्ज़ खत्म हो जाता है। लेकिन अगर कोई न पढ़े, तो सारे लोग गुनाह के ज़िम्मेदार होंगे।
- जिहाद (अल्लाह की राह में लड़ना): अगर कुछ लोग इस फ़र्ज़ को पूरा करें, तो बाकियों की ज़िम्मेदारी हट जाती है।
वाजिब (Wajib)
वाजिब वो काम हैं जो फ़र्ज़ से थोड़ा कम दर्जे के हैं, लेकिन फिर भी करना ज़रूरी है। अगर कोई वाजिब काम छूट जाए, तो सज्दा-ए-सहव (गलती की माफी का सज्दा) करके उसकी भरपाई की जा सकती है। मिसाल के तौर पर:
- वित्र की नमाज़ में दुआ-ए-कुनूत पढ़ना: ये वाजिब है। अगर आप भूल गए, तो सज्दा-ए-सहव कर लें, नमाज़ पूरी हो जाएगी।
- ईद की नमाज़: ये भी वाजिब है।
लेकिन अगर कोई फ़र्ज़ छूट जाए, तो सज्दा-ए-सहव से काम नहीं चलेगा, बल्कि पूरी नमाज़ दोबारा पढ़नी पड़ेगी। वाजिब को जान-बूझकर छोड़ना गुनाह है, लेकिन फ़र्ज़ की तरह सख्त नहीं।
सुन्नत (Sunnat)
सुन्नत वो काम हैं जो हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने किए या करने की हिदायत दी। इनका करना सवाब देता है और छोड़ने से गुनाह हो सकता है, लेकिन ये फ़र्ज़ या वाजिब जितना ज़रूरी नहीं। सुन्नत की दो तरह हैं:
1. सुन्नत-ए-मुअक्किदा (Sunnate Muakkida)
ये वो सुन्नतें हैं जिन पर बहुत ज़ोर दिया गया है। हमारे नबी (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने इन्हें हमेशा किया और कभी-कभार ही छोड़ा। मिसाल:
- फ़ज्र की दो रकात सुन्नत: ये सुन्नत-ए-मुअक्किदा हैं।
- ज़ोहर और मगरिब की सुन्नतें: इनका करना बहुत सवाब देता है।
इन्हें जान-बूझकर छोड़ना गुनाह है, और करने वाला बहुत बड़ा सवाब पाता है।
2. सुन्नत-ए-गैर-मुअक्किदा (Sunnate Ghair Muakkida)
ये वो सुन्नतें हैं जिन पर उतना ज़ोर नहीं दिया गया। इन्हें करने का सवाब है, लेकिन छोड़ने से गुनाह नहीं। मिसाल:
- इशा की चार रकात सुन्नत: ये गैर-मुअक्किदा हैं।
- किसी नेक काम को बार-बार करना: जैसे हर बार मस्जिद में दाखिल होने से पहले दायां पांव रखना।
हालांकि गैर-मुअक्किदा सुन्नतें छोड़ने से गुनाह नहीं, लेकिन अगर आप इन्हें अल्लाह की रज़ा के लिए करते हैं, तो अल्लाह आपके दर्जे बुलंद करता है। मिसाल के तौर पर, ऑफिस में एक कर्मचारी सिर्फ अपनी ड्यूटी करता है, लेकिन दूसरा थोड़ा एक्स्ट्रा काम करता है। बॉस को दूसरा वाला ज़्यादा पसंद आएगा और उसे तरक्की मिलने की उम्मीद ज़्यादा होगी। उसी तरह, सुन्नतें करने से अल्लाह की खास रहमत मिलती है।
मुस्तहब (Mustahab)
मुस्तहब वो काम हैं जिन्हें करना अच्छा और नेक माना जाता है, लेकिन न करना गुनाह नहीं। इन्हें करने से सवाब मिलता है और ये अल्लाह की रज़ा का ज़रिया बनते हैं। इन्हें मंदूब भी कहते हैं। मिसाल:
- नमाज़ से पहले या बाद में तस्बीह पढ़ना (जैसे सुब्हानल्लाह, अलहम्दुलिल्लाह)।
- खाने से पहले बिस्मिल्लाह कहना।
मुस्तहब कामों को करने से आपका दर्जा बुलंद होता है, और ये छोटे-छोटे काम अल्लाह के करीब ले जाते हैं।
हराम (Haraam)
हराम वो काम हैं जो इस्लाम में सख्ती से मना किए गए हैं। इन्हें करना बड़ा गुनाह है, और इन्हें छोड़ने का सवाब है। मिसाल:
- शराब पीना।
- सूद (ब्याज) लेना या देना।
- चोरी, जुआ, या झूठ बोलना।
हराम कामों से बचना हर मुसलमान का फर्ज़ है। अगर कोई हराम करता है, तो उसे तौबा करनी चाहिए, वरना उसे अल्लाह के अज़ाब का सामना करना पड़ सकता है।
मकरूह (Makrooh)
मकरूह का मतलब है वो काम जो शरीअत में नापसंद हैं। इनकी दो तरह हैं:
1. मकरूह तहरीमी (Makrooh Tahreemi)
ये वो काम हैं जो हराम के बहुत करीब हैं। इन्हें करना गुनाह है, लेकिन हराम जितना सख्त नहीं। मिसाल:
- नमाज़ में बिना वजह इधर-उधर देखना।
- बिना उज़र के जमात की नमाज़ छोड़ना।
इन्हें करने से गुनाह होता है, और इन्हें छोड़ना ज़रूरी है।
2. मकरूह तन्ज़ीही (Makrooh Tanzeehi)
ये वो काम हैं जो नापसंद तो हैं, लेकिन हराम के करीब नहीं। इन्हें करने से गुनाह नहीं, लेकिन छोड़ने से सवाब मिलता है। मिसाल:
- नमाज़ में ऐसे कपड़े पहनना जो ध्यान भटकाएं।
- खाने के बाद बिस्मिल्लाह न कहना।
मकरूह तन्ज़ीही से बचना अच्छा है, क्योंकि ये छोटी-छोटी बातें आपके अमल को और बेहतर बनाती हैं।
इन नियमों का नमाज़ और ज़िंदगी में असर
- फ़र्ज़ छूटने का असर: अगर नमाज़ में कोई फ़र्ज़ छूट जाए, जैसे रुकू या सज्दा, तो नमाज़ पूरी नहीं होगी। इसे दोबारा पढ़ना पड़ेगा।
- वाजिब छूटने का असर: अगर कोई वाजिब छूट जाए, जैसे दुआ-ए-कुनूत, तो सज्दा-ए-सहव से नमाज़ ठीक हो सकती है।
- सुन्नत और मुस्तहब: इन्हें करना सवाब देता है, और छोड़ने से नमाज़ पर असर नहीं पड़ता, लेकिन इन्हें करने से आपकी इबादत में और रौनक आती है।
- मकरूह और हराम: मकरूह तहरीमी करने से नमाज़ मकरूह हो सकती है, और हराम काम करने से नमाज़ का सवाब कम हो सकता है।
इसी तरह, ज़िंदगी के हर काम में इन नियमों का पालन करना चाहिए। मसलन, ज़कात फ़र्ज़ है, रोज़ा फ़र्ज़ है, लेकिन किसी गरीब की मदद करना मुस्तहब हो सकता है।
फ़र्ज़, वाजिब, सुन्नत, मुस्तहब, मकरूह और हराम को समझना हर मुसलमान के लिए ज़रूरी है। ये नियम हमें बताते हैं कि हमें अपनी ज़िंदगी में क्या करना चाहिए और क्या नहीं। फ़र्ज़ और वाजिब को हर हाल में पूरा करना चाहिए, सुन्नत और मुस्तहब को अपनाने से अल्लाह की रहमत मिलती है, और मकरूह व हराम से बचना ज़रूरी है।
तो अगली बार जब आप नमाज़ पढ़ें, रोज़ा रखें, या कोई नेक काम करें, तो इन नियमों को याद रखें। ये छोटी-छोटी बातें आपकी इबादत को और बेहतर बनाएंगी और अल्लाह के करीब ले जाएंगी। अगर आपको ये जानकारी पसंद आई, तो इसे अपने दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ शेयर करें। अल्लाह हम सबको नेक अमल करने की तौफीक दे। आमीन।
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