इस आर्टिकल में हम आपको जनाजे की नमाज की दुआ हिंदी में, उसका तर्जुमा (अनुवाद), और जनाजे से जुड़ी दूसरी दुआएं व नियत के बारे में विस्तार से बताएंगे। साथ ही, हम यह भी समझाएंगे कि जनाजे की नमाज और उसकी दुआ का हमारे दीन में क्या महत्व है। तो आइए, शुरू करते हैं और इस खास जानकारी को हासिल करते हैं ताकि हम अपने दीन को और बेहतर तरीके से निभा सकें।
जनाजे की नमाज की अहमियात
हमारी दुनिया एक मोहलत (मियाद) की जगह है, जहां हम अपने अमल (कर्म) और अखलाक (चरित्र) के जरिए अपनी आखिरत की तैयारी करते हैं। कुरान और हदीस में बार-बार इस बात का जिक्र है कि हमें हर वक्त अल्लाह ताला की इबादत और नेकी के कामों में लगे रहना चाहिए। जनाजे की नमाज पढ़ना और उसमें शरीक (शामिल) होना भी एक ऐसा अमल है, जो न सिर्फ मरने वाले के लिए मगफिरत (क्षमा) की दुआ का जरिया बनता है, बल्कि यह हमें हमारी अपनी आखिरत की याद भी दिलाता है।
हदीस में आता है कि जब कोई मुस्लिम जनाजे की नमाज में हिस्सा लेता है, तो उसे बहुत बड़ा सवाब (पुण्य) मिलता है। अगर वह जनाजे को कब्र तक ले जाता है और मिट्टी डालने में भी हिस्सा लेता है, तो उसका सवाब और भी बढ़ जाता है। इसलिए हर मुस्लिम का फर्ज है कि जब भी उसे किसी जनाजे का पता चले, वह उसमें जरूर शरीक हो।
जनाजे की नमाज की दुआ (Janaze Ki Dua)
जनाजे की नमाज में चार तक्बीरात (तकबीर) होती हैं, और हर तक्बीर के बाद खास दुआएं पढ़ी जाती हैं। इनमें से सबसे अहम दुआ वह है, जो दूसरी तक्बीर के बाद पढ़ी जाती है। आइए, इसे हिंदी, अरबी, और इंग्लिश में देखते हैं, साथ ही इसका तर्जुमा भी समझते हैं।
जनाजे की दुआ अरबी में
اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِحَيِّنَا وَمَيِّتِنَا وَشَاهِدِنَا وَغَائِبِنَا وَصَغِيرِنَا وَكَبِيرِنَا وَذَكَرِنَا وَأُنْثَانَا، اَللّٰهُمَّ مَنْ أَحْيَيْتَهُ مِنَّا فَأَحْيِهِ عَلَى الْإِسْلَامِ، وَمَنْ تَوَفَّيْتَهُ مِنَّا فَتَوَفَّهُ عَلَى الْإِيمَانِ
जनाजे की दुआ हिंदी में
ऐ अल्लाह! हमारे जिंदा और मुर्दा, हाजिर और गैर-हाजिर, छोटे और बड़े, मर्द और औरत, सबको बख्श दे। ऐ अल्लाह! हम में से जिसे तू जिंदगी दे, उसे इस्लाम पर जिंदगी दे, और जिसे तू मौत दे, उसे ईमान पर मौत दे।
जनाजे की दुआ इंग्लिश में
O Allah! Forgive our living and our dead, those who are present and those who are absent, our young and our old, our males and our females. O Allah! Whomever You keep alive, keep them alive on Islam, and whomever You cause to die, let them die with faith.
जनाजे की दुआ का तर्जुमा
इस दुआ का तर्जुमा कुछ इस तरह है:
इलाही! बख्श दे हमारे हर जिंदा को और हमारे हर फौत शुदा (मृत) को, हमारे हर हाजिर को और हमारे हर गैर-हाजिर को, हमारे हर छोटे को और हमारे हर बड़े को, हमारे हर मर्द को और हमारी हर औरत को। इलाही! तू हम में से जिसे जिंदा रखे, तो उसे इस्लाम पर जिंदा रख, और हम में से जिसे मौत दे, तो उसे ईमान पर मौत दे।
(अल मुस्तदरक लिलहाकिम, हदीस 1366)
अगर दुआ याद न हो, तो क्या करें?
कभी-कभी ऐसा होता है कि हमें जनाजे की दुआ याद नहीं रहती। ऐसे में घबराने की जरूरत नहीं है। आप नीचे दी गई दुआ पढ़ सकते हैं:
रब्बना आतिना फिद्दुनिया हसनतन व फील आखिरति हसनतन व किना अजाबन्नार।
अगर यह दुआ भी याद न आए, तो आप सूरह फातिहा और दुरूद शरीफ पढ़ सकते हैं। अल्लाह ताला आपके इस नेक इरादे को जरूर कबूल फरमाएंगे।
जनाजे की नमाज की नियत (Janaze Ki Namaz Ki Niyat)
हर इबादत में नियत का होना बेहद जरूरी है, क्योंकि बिना नियत के कोई भी अमल कबूल नहीं होता। जनाजे की नमाज की नियत भी उसी तरह जरूरी है, जैसे दूसरी नमाजों की नियत। इसे दिल में करने का तरीका कुछ इस तरह है:
नियत करता हूँ मैं जनाजे की नमाज की, चार तक्बीरों की, अल्लाह के लिए, इस मय्यत (मृतक) की मगफिरत के लिए, मुंह मेरा काबा शरीफ की तरफ, अल्लाहु अकबर।
नियत को दिल में करना चाहिए, और इसे ज़बान से बोलना जरूरी नहीं है। अगर आप इसे ज़बान से बोलना चाहते हैं, तो बोल सकते हैं, लेकिन खामोशी से दिल में नियत करना ही काफी है।
कब्र पर मिट्टी डालने की दुआ (Janaze Ko Mitti Dene Ki Dua)
जनाजे को कब्र में दफनाने के बाद मिट्टी डालना भी एक सुन्नत अमल है। इस दौरान तीन बार मिट्टी डाली जाती है, और हर बार एक खास दुआ पढ़ी जाती है। यह दुआएं हमें यह याद दिलाती हैं कि हम कहां से आए हैं और कहां वापस जाना है।
पहली बार मिट्टी डालते वक्त:
मिन्हा खलकनाकुम
(इससे ही हमने तुम्हें बनाया है)दूसरी बार मिट्टी डालते वक्त:
व फीहा नुईदुकुम
(इसमें ही तुम्हें वापस जाना है)तीसरी बार मिट्टी डालते वक्त:
व मिन्हा नुखरिजुकुम तारतन उखरा
(और हम तुम्हें इसी में से दोबारा उठाएंगे)
इन दुआओं को पढ़ते वक्त हमें यह याद रखना चाहिए कि हमारी जिंदगी का मकसद अल्लाह की इबादत और नेक अमल करना है। कब्र पर मिट्टी डालना हमें हमारी हकीकत और आखिरत की याद दिलाता है।
जनाजे की नमाज कैसे पढ़ें?
जनाजे की नमाज दूसरी नमाजों से थोड़ी अलग होती है। इसमें न रुकू होता है, न सजदा, और न ही बैठना पड़ता है। यह नमाज खड़े-खड़े पढ़ी जाती है और इसमें चार तक्बीरात होती हैं। इसका तरीका कुछ इस तरह है:
पहली तक्बीर: नियत करने के बाद पहली तक्बीर कहें और सना पढ़ें:
सुब्हानक अल्लाहुम्मा व बिहम्दिक व तबारकस्मुक व तआला जद्दुक व ला इलाहा गैरुक।दूसरी तक्बीर: दूसरी तक्बीर के बाद दुरूद शरीफ पढ़ें।
उदाहरण: अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यिदना मुहम्मद...तीसरी तक्बीर: तीसरी तक्बीर के बाद जनाजे की दुआ पढ़ें, जो ऊपर दी गई है।
चौथी तक्बीर: चौथी तक्बीर के बाद सला म फेरें, पहले दाएं और फिर बाएं।
यह नमाज बहुत छोटी होती है, लेकिन इसका सवाब बहुत बड़ा है। इसलिए हमें इसे सही तरीके से सीखना चाहिए और हर जनाजे में शरीक होने की कोशिश करनी चाहिए।
हर मुस्लिम का फर्ज है कि वह अपने दीन की बातों को सीखे और दूसरों तक पहुंचाए। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो, तो इसे अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ जरूर शेयर करें, क्योंकि दीन की बातें शेयर करना सदका-ए-जारीया है। अगर आपके कोई सवाल हैं या आप और कुछ जानना चाहते हैं, तो नीचे कमेंट करें। हम आपके सवालों का जवाब जरूर देंगे।
फी अमान अल्लाह!
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