Farz Namaz Ke Baad Azkar |- फ़र्ज़ नमाज़ के बाद अज़कार: वो तीन काम जो हर मुसलमान को करने चाहिए

 

फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ना हर मुसलमान के लिए एक अहम इबादत है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि नमाज़ के बाद कुछ खास अज़कार (ज़िक्र) करने से आपका सवाब दोगुना हो सकता है? जी हाँ, रसूलअल्लाह (स.अ.व.) ने हमें कुछ ऐसे आसान और बरकती आमाल सिखाए हैं, जो नमाज़ के बाद करने में बस चंद मिनट लगते हैं, लेकिन ये आपकी रूह को सुकून, दिल को ताज़गी, और जन्नत का रास्ता आसान करते हैं। ये अज़कार न सिर्फ आपके गुनाहों की मगफिरत का ज़रिया बनते हैं, बल्कि अल्लाह की रहमत को आपके करीब लाते हैं।

रसूलअल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया:
“जो शख्स किसी को नेकी की तरफ बुलाता है, उसे उतना ही सवाब मिलता है, जितना उस नेकी को करने वाले को मिलता है।” (मुस्लिम)

Farz Namaz Ke Baad Azkar 

तो आइए, जानते हैं उन तीन खास आमाल के बारे में, जो हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद करने चाहिए। इन्हें न सिर्फ खुद करें, बल्कि दूसरों को भी शेयर करें, ताकि आप भी इस सवाब में शरीक हो सकें।

1. आयतुल कुर्सी की तिलावत

पहला और सबसे अहम अमल है आयतुल कुर्सी पढ़ना। ये कुरआन-ए-पाक की सूरह बक़रह (आयत 255) में मौजूद है और इसे कुरआन की सबसे ताकतवर आयत माना जाता है। रसूलअल्लाह (स.अ.व.) ने फरमाया:
“जो शख्स हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद आयतुल कुर्सी पढ़ता है, उसके और जन्नत के बीच सिर्फ मौत का फासला रह जाता है।”

ये आयत इतनी बरकती है कि इसे पढ़ने में बस कुछ सेकंड्स लगते हैं, लेकिन ये शैतान और हर तरह की बुराई से हिफाज़त करती है। नमाज़ के बाद रुककर इस आयत को शिद्दत के साथ पढ़ें, और अल्लाह की रहमत को अपने करीब पाएं।

2. तस्बीह-ए-फ़ातिमा

दूसरा अमल है तस्बीह-ए-फ़ातिमा पढ़ना। इस तस्बीह का नाम हज़रत फ़ातिमा (रज़ियल्लाहु अन्हा) के नाम पर पड़ा, क्योंकि रसूलअल्लाह (स.अ.व.) ने अपनी प्यारी बेटी को ये तस्बीह सिखाई थी, जब उन्होंने अपनी रोज़मर्रा की थकान का ज़िक्र किया। ये तस्बीह बेहद आसान है और इसमें तीन खास लफ्ज़ों को कुल 100 बार पढ़ना है:

  • सुब्हान अल्लाह – 33 बार (अल्लाह हर ऐब से पाक है)
  • अल्हम्दु लिल्लाह – 33 बार (हर नेमत पर अल्लाह का शुक्र)
  • अल्लाहु अकबर – 34 बार (अल्लाह सबसे बड़ा है)

इस तस्बीह को पढ़ने से दिल साफ होता है, ज़हन में रौशनी आती है, और रूह को सुकून मिलता है। ये छोटा-सा ज़िक्र आपकी नमाज़ को और भी बरकती बनाता है।

3. कलिमा-ए-शहादत

तीसरा अमल है कलिमा-ए-शहादत पढ़ना। ये वो ज़िक्र है, जो हर मुसलमान के ईमान की बुनियाद है। इसे हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद पढ़ना चाहिए:

“अशहदु अन ला इलाहा इल्लल्लाहु वहदहु ला शरीक लहु, व अशहदु अन्ना मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु।”

तर्जुमा: मैं गवाही देता हूँ कि अल्लाह के सिवा कोई मাবूद नहीं, वो अकेला है, उसका कोई शरीक नहीं, और मैं गवाही देता हूँ कि मुहम्मद (स.अ.व.) उसके बंदे और रसूल हैं।

हदीस-ए-पाक (सही मुस्लिम, हदीस न. 1352) में आता है कि तस्बीह-ए-फ़ातिमा और कलिमा-ए-तौहीद पढ़ने वाले के सारे गुनाह माफ कर दिए जाते हैं, चाहे वो समुद्र के झाग जितने ही क्यों न हों।

इन अज़कार का असर

इन तीनों अज़कार को पढ़ने में सिर्फ 3-4 मिनट लगते हैं, लेकिन इनका सवाब बेपनाह है। ये छोटे-छोटे आमाल आपके नाम-ए-आमाल को भारी करते हैं, अल्लाह की क़ुर्बत हासिल कराते हैं, और जन्नत के दरवाज़ों तक ले जाते हैं। अल्लाह के सामने एक छोटा-सा अमल भी बड़े इनाम की वजह बनता है।

आखिरी बात

हर फ़र्ज़ नमाज़ के बाद इन अज़कार को अपनी आदत बनाएं। आयतुल कुर्सी, तस्बीह-ए-फ़ातिमा, और कलिमा-ए-शहादत को शिद्दत और यकीन के साथ पढ़ें। इन नेकियों को दूसरों तक भी पहुंचाएं, ताकि आप भी उनके सवाब में शरीक हो सकें। अल्लाह तआला हमें इन आमाल पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए और हमें जन्नतुल फिरदौस में जगह दे। आमीन।

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