इस्तिखारा का मतलब है अल्लाह तआला से भलाई और खैर तलब करना। जब ज़िंदगी में कोई ऐसा फैसला करना हो, जिसमें आप उलझन में हों कि ये काम मेरे लिए सही है या नहीं, जैसे शादी, कारोबार, या कोई और अहम मसला, तो इस्तिखारा का सहारा लेना चाहिए। ये एक रूहानी अमल है, जिसमें हम अल्लाह से हिदायत मांगते हैं ताकि वो हमें सही रास्ता दिखाए। आइए, आसान हिन्दी में, उर्दू के लफ्ज़ों के साथ, जानते हैं कि इस्तिखारा करने का तरीका क्या है और इसे कैसे अंजाम देना है।
इस्तिखारा करने का तरीका
इस्तिखारा करना बेहद आसान है। ये दो रकात नफ्ल नमाज़ और एक खास दुआ का मिश्रण है। नीचे इसका पूरा तरीका बयान किया गया है:
1. दो रकात नफ्ल नमाज़ पढ़ें
सबसे पहले वुज़ू करें और पाक-साफ होकर नमाज़ की नियत बांधें। नियत इस तरह करें:
“नियत करता हूँ मैं दो रकात नफ्ल, वास्ते अल्लाह तआला के, रुख मेरा काबे शरीफ की तरफ, अल्लाहु अकबर।”
पहली रकात:
- हाथ बांधने के बाद सना पढ़ें।
- फिर सूरह फातिहा (अलहम्दु शरीफ) और इसके बाद कोई भी सूरह (जैसे सूरह कौसर या सूरह इखलास) पढ़ें।
- रुकू, सज्दा, और बाकी नमाज़ का तरीका वही है जो आम नमाज़ में होता है।
दूसरी रकात:
- सूरह फातिहा और कोई सूरह पढ़ें।
- रुकू और सज्दों के बाद अत्तहिय्यात, दुरूद शरीफ, और दुआ-ए-मासूरा पढ़ें।
- फिर सलाम फेरकर नमाज़ पूरी करें।
2. इस्तिखारा की दुआ पढ़ें
नमाज़ के बाद सलाम फेरने के बाद इस्तिखारा की दुआ पढ़ें, जो रसूलअल्लाह (स.अ.व.) ने सिखाई है। इस दुआ को पढ़ते वक्त जब हाज़ल अम्र (هَذَا الْأَمْرَ) पर पहुंचें, तो उस काम को दिल में लाएं, जिसके लिए आप इस्तिखारा कर रहे हैं। दुआ ये है:
इस्तिखारा की दुआ (अरबी में):
اللَّهُمَّ إِنِّي أَسْتَخِيرُكَ بِعِلْمِكَ
وَأَسْتَقْدِرُكَ بِقُدْرَتِكَ
وَأَسْأَلُكَ مِنْ فَضْلِكَ الْعَظِيمِ
فَإِنَّكَ تَقْدِرُ وَلاَ أَقْدِرُ
وَتَعْلَمُ وَلاَ أَعْلَمُ
وَأَنْتَ عَلَّامُ الْغُيُوبِ
اللَّهُمَّ إِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ خَيْرٌ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي
فَاقْدُرْهُ لِي وَيَسِّرْهُ لِي
ثُمَّ بَارِكْ لِي فِيهِ
وَإِنْ كُنْتَ تَعْلَمُ أَنَّ هَذَا الْأَمْرَ شَرٌّ لِي فِي دِينِي وَمَعَاشِي وَعَاقِبَةِ أَمْرِي
فَاصْرِفْهُ عَنِّي وَاصْرِفْنِي عَنْهُ
وَقْدِرْ لِيَ الْخَيْرَ حَيْثُ كَانَ
ثُمَّ أَرْضِنِي بِهِ
इस्तिखारा की दुआ (हिन्दी में):
अल्लाहुम्मा इन्नी अस्तखीरुका बि’इल्मिक
वअस्तक़्दिरुका बिक़ुदरतिक
वअसअलुका मिन फज़्लिकल अज़ीम
फइन्नका तक़्दिरु वला अक़्दिर
वतअ’लमु वला अअ’लमु
वअन्ता ‘अल्लामुल ग़ुयूब
अल्लाहुम्मा इन कुन्ता तअ’लमु अन्ना हाज़ल अम्र (यहाँ उस काम को दिल में लाएं)
खैरुन ली फी दीनी वमआशी वआकिबतु अमरी
फक़्दुरहु ली वयस्सिरहु ली, सुम्मा बारिक ली फीहि
व इन कुन्ता तअ’लमु अन्ना हाज़ल अम्र (यहाँ उस काम को दिल में लाएं)
शर्रुन ली फी दीनी वमआशी वआकिबतु अमरी
फस्रिफहु अन्नी वस्रिफनी अन्हु, वक़्दिर लियल खैर हयसु काना
सुम्मा अरज़िनी बिहि
तर्जुमा (हिन्दी में):
“ऐ अल्लाह! मैं तेरे इल्म के ज़रिए भलाई मांगता हूँ,
और तेरी क़ुदरत से ताकत तलब करता हूँ।
मैं तुझसे तेरा अज़ीम फज़ल मांगता हूँ।
बेशक तू ही सब कुछ कर सकता है, मैं नहीं।
तू सब कुछ जानता है, मैं नहीं।
और तू छुपी हुई बातों को जानने वाला है।
ऐ अल्लाह! अगर तू जानता है कि ये काम (यहाँ काम का ज़िक्र करें) मेरे दीन, मेरी ज़िंदगी, और मेरे अंजाम के लिए बेहतर है,
तो इसे मेरे लिए मुक़र्रर कर दे, इसे मेरे लिए आसान कर दे, और इसमें मेरे लिए बरकत डाल दे।
और अगर तू जानता है कि ये काम मेरे दीन, मेरी ज़िंदगी, और मेरे अंजाम के लिए बुरा है,
तो इसे मुझसे दूर कर दे और मुझे भी इससे दूर कर दे।
मेरे लिए भलाई मुक़र्रर कर दे, चाहे वो कहीं भी हो,
और मुझे उस पर राज़ी कर दे।”
3. अल्लाह से दिल की गहराई से दुआ करें
दुआ पढ़ने के बाद अल्लाह तआला से शिद्दत के साथ मांगें कि वो आपको उस काम में खैर अता फरमाए। अगर उस काम में कोई नुकसान या परेशानी है, तो अल्लाह उसे आपसे दूर कर दे। अपने दिल की हर बात अल्लाह के सामने रखें, क्योंकि वो आपकी हर पुकार सुनता है।
4. दिल के झुकाव पर अमल करें
इस्तिखारा करने के बाद जिस काम की तरफ आपका दिल मायल हो, आपको इत्मिनान और सुकून महसूस हो, उसे अल्लाह की हिदायत समझकर करें। अगर किसी काम से बेचैनी या डर महसूस हो, तो समझ लें कि वो आपके लिए ठीक नहीं है। अगर एक बार में दिल को इत्मिनान न हो, तो इस अमल को सात दिन तक दोहराएं। इंशा अल्लाह, अल्लाह आपको सही रास्ता दिखाएगा।
इस्तिखारा से जुड़े आम सवाल (FAQ)
1. इस्तिखारा नमाज़ का वक्त क्या है?
इस्तिखारा की नमाज़ दिन या रात में किसी भी वक्त पढ़ी जा सकती है, बशर्ते वो मकरूह वक्त (जैसे सूरज निकलने या डूबने का समय) न हो।
2. इस्तिखारा की नमाज़ सुन्नत है या नफ्ल?
ये नमाज़ नफ्ल है, जो खास तौर पर अल्लाह से हिदायत मांगने के लिए पढ़ी जाती है।
3. क्या इस्तिखारा के बाद ख्वाब ज़रूरी है?
नहीं, ख्वाब आना ज़रूरी नहीं है। इस्तिखारा का मतलब ये नहीं कि अल्लाह सीधे जवाब देगा। बल्कि, ये आपके दिल को सही रास्ते की तरफ मायल करता है। जिस काम में सुकून और इत्मिनान हो, उसे खैर समझें।
आखिरी बात
इस्तिखारा एक रूहानी अमल है, जो हमें अल्लाह की रहमत और हिदायत से जोड़ता है। इसे शिद्दत, यकीन, और साफ दिल से करें। अल्लाह तआला हमारे मसाइल आसान करे, हमें सही रास्ता दिखाए, और हर फैसले में खैर अता फरमाए। आमीन।
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